Allama Iqbal Shayari In Hindi: मुहम्मद इकबाल इनका जन्म 9 नवंबर 1877 के अविभाजित भारत में हुआ था. जिनकी उर्दू और फ़ारसी भाषा में कविता बीसवीं सदी की महानतम कविताओं में से एक है, और जिनकी सांस्कृतिक और राजनीतिक आदर्श की दृष्टि है।
इक़बाल ने अपने जीवनकाल में बहुत सी प्रसिद्ध किताबें लिखीं जिनमे ज़्यादातर इन्होने कवितायेँ लिखीं हैं उन्होंने मुख्य रूप से राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शन और धर्म पर विद्वानों के कार्यों को लिखने पर ध्यान केंद्रित किया। वह असरार-ए-खुदी सहित अपने काव्य कार्यों के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं – जो नाइटहुड, रुमुज-ए-बेखुदी और बंग-ए-दारा लेकर आए। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद उन्हें वहां के राष्ट्रीय कवि का नाम दिया गया।
उन्हें “हकीम-उल-उम्मत” (“उम्मा के ऋषि”) और “मुफक्किर-ए-पाकिस्तान” (“पाकिस्तान के विचारक”) के रूप में भी जाना जाता है। ये कविताओं में उर्दू, हिंदी और पारसी भाषा का प्रयोग करते थे. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था की इन्हे केवल ये तीन भाषा ही आती थे. इक़बाल अंग्रेजी भाषा में भी निपुण थे. 1922 में मोहम्मद इक़बाल को किंग जॉर्ज 5 ने ‘नाइट बैचलर’ का सम्मान दिया. यहाँ प्रस्तुत है कुछ allama iqbal 2 line shayari, प्लीज अच्छा लगे तो सर मुहम्मद इक़बाल की शायरी को अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे.
Allama Iqbal Shayari In Hindi
इक़रार ऐ #मुहब्बत ऐहदे ऐ-वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं #इक़बाल.हर शख्स खुदी की “मस्ती” में बस अपने खातिर जीता है
Allama Iqbal Shayari In Hindi |
बे-ख़तर ”कूद” पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
दुनिया की “महफ़िलों” से उकता गया हूँ या रब,क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब_दिल ही बुझ गया हो।
हज़ारों साल_नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है,बड़ी मुश्किल से होता है, #चमन में दीदावर पैदा.
फूलों की “पत्तियों” से कट सकता है ‘हीरे’ का जिगरमर्दे नादान पर #कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर
बे-ख़तर_कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
यह भी पढ़े।
Iqbal Shayari In Hindi |
‘औकात’ में रखना था जिसेगलती से दिल में #रखा था उसे
फ़क़त #निगाह से होता है “फ़ैसला” दिल कान हो निगाह में #शोख़ी तो दिलबरी क्या है
दिल की #बस्ती अजीब बस्ती है,लूटने वाले को_तरसती है।
#बातिल से दबने वाले ऐ ‘आसमाँ’ नहीं हमसौ बार कर चुका है तू #इम्तिहाँ हमारा
तेरे इश्क़ की #इन्तहा चाहता हूँ मेरी सादगी ‘देख’ क्या चाहता हूँभरी बज़्म में #राज़ की बात कह दी बड़ा_बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
दुनिया की #महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,क्या लुत्फ़ #अंजुमन का जब “दिल” ही बुझ गया हो।
तेरे आज़ाद_बंदों की न ये दुनिया न वो #दुनियायहाँ मरने की ”पाबंदी” वहाँ जीने की पाबंदी
मुझे #इश्क के पर लगा कर उड़ामेरी खाक ”जुगनू” बना के उड़ा
Allama Iqbal Poetry In Hindi |
माना कि तेरी_दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैंतू मेरा शौक़ देख मिरा_इंतज़ार देख
आँख जो कुछ_देखती है लब पे आ #सकता नहींमहव-ए-हैरत हूँ कि ”दुनिया” क्या से क्या हो जाएगी…!
और भी कर देता है ”दर्द” में इज़ाफ़ातेरे ‘होते’ हुए गैरों का “दिलासा” देना
हमने “तन्हाई” को अपना बना रक्खाराख के ढ़ेर ने #शोलो को दबा रक्खा है
दिल से जो ”बात” निकलती है असर_रखती हैपर नहीं ताक़त -ए -परवाज़ मगर रखती है
न रख ”उम्मीद-इ-वफ़ा” किसी परिंदे से इकबाल,जब पर निकल आते है तोह अपना “आशियाना” भूल जाते हैं.
नहीं तेरा ”नशेमनं” कसर्-ए-शुलतानी केगुम्बद पर,तू #शाहीन बसेर कर पहाडों की ”चट्टानो”में!!
#ग़ुलामी में न काम आती हैं “शमशीरें” न तदबीरेंजो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं #पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें
ये जन्नत_मुबारक रहे ज़ाहिदों कोकि मैं आप का #सामना चाहता हूँ
किसी की ”याद” नेजख्मों से भर दिया है #सीनाअब हर एक_सांस पर शक है के #आखरी होगी….!
मैं रो रो के ”कहने” लगा दर्द-ए-दिल,वो मुंह फेर कर #मुस्कुराने लगे।
कौन_रखेगा याद हमें इस दौर ए #खुदगर्जी में,हालत ऐसी है की ”लोगों” को खुदा याद नहीं
इश्क_कातिल से भी #मकबूल से हमदर्दी भीयह बता किससे ”मोहब्बत” की जजा मांगेगा
अनोखी_वज़्अ’ है सारे ज़माने से ”निराले” हैंये आशिक़ कौन सी #बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
तू ने ये क्या_ग़ज़ब किया मुझ को भी #फ़ाश कर दियामैं ही तो एक #राज़ था सीना-ए-काएनात में
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे_हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँकार-ए-जहाँ #दराज़ है अब मिरा #इंतिज़ार कर
आईन-ए-जवाँ-मर्दां #हक़-गोई ओ बे-बाकीअल्लाह के ”शेरों” को आती नहीं रूबाही
#सितारों से आगे जहाँ और भी हैंअभी इश्क़ के “इम्तिहाँ” और भी हैंतही ”ज़िंदगी” से नहीं ये फ़ज़ाएँयहाँ सैकड़ों #कारवाँ और भी हैं
कभी ”छोड़ी” हुई मंज़िल भी याद_आती है राही कोखटक सी है जो सीने में #ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
जानते हो #तुम भी फिर भी ”अजनान” बनते होइस तरह हमें “परेशान” करते हो.पूछते हो #तुम्हे किया पसंद हैजवाब खुद हो फिर भी “सवाल” करते हो..
मिटा दे अपनी_हस्ती को गर कुछ मर्तबा* चाहिएकि दाना खाक में मिलकर, #गुले-गुलजार होता है
#फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैंक्या ज़माने में “पनपने” की यही बातें हैं
Iqbal Shayari In Hindi
नशा ”पिला” के गिराना तो सब को आता हैमज़ा तो तब है कि “गिरतों” को थाम ले साक़ी
#वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभी_बाक़ी हैनूर-ए-तौहीद का ”इत्माम” अभी बाक़ी है
अगर #हंगामा-हा-ए-शौक़ से है “ला-मकाँ” ख़ाली ख़ता किस की है या रब #ला-मकाँ तेरा है या मेरा
अपने मन में #डूबकर पा जा सुराग_जिंदगीतू अगर मेरा नहीं #बनता ना बन अपना तो बन
ख़ुदी वो ”बहर” है जिस का कोई किनारा नहींतू आबजू इसे समझा_अगर तो चारा नहीं
अल्लामा “इक़बाल” रह० ने ‘फरमाया’ था:-की मोहम्मद से #वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैंये जहाँ चीज़ है क्या “लौह-ओ-क़लम” तेरे हैं
हम जब_निभाते है तो इस तरह ”निभाते” हैसांस लेना तो #छोड़ सकते है पर दमन_यार नहीं
Allama Iqbal Quotes In Hindi |
महीने-वस्ल के घड़ियों की ‘सूरत’ उड़ते जाते हैंमगर घड़ियाँ #जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
जमीर_जाग ही जाता हैअगर दिल #जिंदा हो तो..कभी ”गुनाह” से पहलेकभी गुनाह के बाद..
#रुलाया ना कर हर बात पर एजिंदगी ज़रुरी नहीं सब की “किस्मत” मेंचुप #करवाने वाले हो
तेरी ”बन्दा” परवारी से मेरे दिन गुज़र रहे हैंन गिला है #दोस्तों का ,न #शिकायत-ऐ-ज़माना…!
नहीं तेरा ”नशेमन” क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद परतू शाहीं है बसेरा कर_पहाड़ों की चटानों में
तू क़ादिर ओ #आदिल है मगर तेरे जहाँ मेंहैं तल्ख़ बहुत “बंदा-ए-मज़दूर” के औक़ात
तू शाहीं है #परवाज़ है काम तेरातिरे सामने ”आसमाँ” और भी हैं
सारे जहाँ से अच्छा,# हिन्दोस्ताँ हमाराहम “बुलबुलें” हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा
नहीं इस खुली_फ़ज़ा में कोई #गोशा-ए-फ़राग़तये जहाँ अजब जहाँ है न ”क़फ़स” न आशियाना
खुदा के ‘बन्दे’ तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं #मारे-मारेमैं उसका ”बन्दा” बनूंगा जिसको खुदा के #बन्दों से प्यार होगा
”मुमकिन” है कि तू जिसको_समझता है बहारांऔरों की निगाहों में वो “मौसम” हो खिजां का
दुआ तो ”दिल” से मांगी जाती है, जुबां से नहीं ऐ #इक़्बाल,क़ुबूल #तोह उसकी भी होती है जिसकी_जुबां नहीं होती.
अमल से #ज़िन्दगी बनती है, ”जन्नत” भी, जहन्नम भी,ये खाकी अपनी #फितरत में, न नूरी है न नारी है.
ढूंढता रहता हूं ऐ ”इकबाल” अपने आप को.आप ही गोया ‘मुसाफिर’ आप ही #मंजिल हूं मैं
ज़मीर ‘जाग’ ही जाता है अगर ज़िन्दा हो #इक़बाल,कभी गुनाह से #पहले तो कभी गुनाह के बाद।
बात #सझ्दों कि नहीं खुलूस दिल कि होती है #इकबालहर ‘मयखाने’ में सराबी और हर #मस्जिद में कोई ”नमाजी” नहीं होता
अपने ‘मन’ में डूब कर पा जा #सुराग़-ए-ज़ि़ंदगीतू अगर मेरा नहीं ”बनता” न बन अपना तो बन
मिटा दे अपनी #हस्ती को गर कुछ #मर्तबा* चाहिएकि दाना खाक में मिलकर, “गुले-गुलजार” होता है
#जानते हो तुम भी फिर भी #अजनान बनते होइस तरह हमें ”परेशान” करते होपूछते हो ‘तुम्हे’ किया पसंद हैजवाब खुद हो फिर भी #सवाल करते हो
हरम-ए-पाक भी #अल्लाह भी क़ुरआन भी एककुछ बड़ी बात थी होते जो “मुसलमान” भी एक
दुश्मन के #इरादों को है ज़ाहिर अगर_करनातुम खेल वही खेलो #अंदाज़ बदल डालो..!
साकी की #मुहब्बत में दिल साफ_हुआ इतनाजब सर को झुकाता हूं #शीशा नजर आता है
ताही #ज़िंदगी से नहीं हैं ये फिज़ाएँयहाँ सैंकड़ों ”कारवाँ” अभी और भी हैं
कभी ऐ #हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ #लिबास-ए-मजाज़ मेंकि हज़ारों सज्दे_तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
रहमत है ”दिल” के साथ रहे #पासबान-ए-अक़्ललेकिन कभी #कभी तो इसे ”तन्हा” भी छोड़ दे
कितनी अजीब है #गुनाहों की जुस्तजू_इकबालनमाज भी ”जल्दी” में पड़ता है फिर से #गुनाह करने के लिए
यक़ीं मोहकम अमल ”पैहम” मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम “जिहाद-ए-ज़िंदगानी” में हैं ये ”मर्दों” की शमशीरें
अपने मन में डूब कर पा जा ”सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी” तू अगर मेरा नहीं बनता न ”बन” अपना तो बन
खुदी को कर ”बुलंद” इतना कि हर #तकदीर से पहलेखुदा बंदे से खुद पूछे_बता तेरी रजा क्या है
दिल से जो बात-निकलती है वोअसर #रखती हैलेकिन नहीं ”ताक़त-ए-परवाज़” मगर रखती है
मस्जिद तो ”बना” दी शब भर में ईमाँ की #हरारत वालों नेमन अपना_पुराना पापी है बरसों में #नमाज़ी बन न सका
जिस खेत से ”दहक़ाँ” को मयस्सर नहीं रोज़ीउस खेत के हर ”ख़ोशा-ए-गंदुम” को जला कर रख दो
ख़ुदावंदा ये तेरे_सादा-दिल बंदे ”किधर” जाएँकि दरवेशी भी अय्यारी है #सुल्तानी भी अय्यारी
इश्क़ भी हो ”हिजाब” में हुस्न भी हो #हिजाब में,या तो ख़ुद ”आश्कार” हो या मुझे आश्कार कर।
ज़िंदगानी की #हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछजू-ए-शीर ओ तेशा ओ ”संग-ए-गिराँ” है ज़िंदगी
बड़े इसरार #पोशीदा हैं इस तन्हाई ”पसंदी” में .ये न समझो कि ”दीवाने” जहनदीदा नहीं होते .#ताजुब क्या अगर इक़बाल इस_दुनिया तुझ से नाखुश हैसारे लोग ”दुनिया” में पसंददीदा नहीं होते .
Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi |
ढूँडता ”फिरता” हूँ मैं ‘इक़बाल’ अपने आप कोआप ही गोया “मुसाफ़िर” आप ही मंज़िल हूँ मैं
हर मुसलमाँ #रग-ए-बातिल के लिए नश्तर थाउस के ”आईना-ए-हस्ती” में अमल जौहर थाजो भरोसा था उसे #क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर थाहै तुम्हें_मौत का डर उस को ख़ुदा का डर थाबाप का इल्म न बेटे को अगर #अज़बर होफिर पिसर ”क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर” क्यूँकर हो
चिंगारी आजादी की ‘सुलगती’ मेरे जश्न में है।इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे_बदन में है।मौत जहां #जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है।कुर्बानी का जज्बा ”जिंदा” मेरे कफन में है।
हम से पहले था ”अजब” तेरे जहाँ का मंज़रकहीं मसजूद थे पत्थर कहीं_माबूद शजरखूगर ए पैकर ए महसूस थी इंसां की नज़रमानता फिर कोई #अनदेखे ख़ुदा को क्योंकरतुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तेराकुव्वत ए बाज़ू ए #मुस्लिम ने किया काम तेरा
तिरे इश्क़ की ”इंतिहा” चाहता हूँमिरी ”सादगी” देख क्या चाहता हूँये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों कोकि मैं आप का सामना चाहता हूँ