85+ Allama Iqbal Shayari In Hindi ( अल्लामा इक़बाल की शायरी 2021)

Allama Iqbal Shayari In Hindi: मुहम्मद इकबाल इनका जन्म 9 नवंबर 1877 के अविभाजित भारत में हुआ था. जिनकी उर्दू और फ़ारसी भाषा में कविता बीसवीं सदी की महानतम कविताओं में से एक है, और जिनकी सांस्कृतिक और राजनीतिक आदर्श की दृष्टि है।  

इक़बाल ने अपने जीवनकाल में बहुत सी प्रसिद्ध किताबें लिखीं जिनमे ज़्यादातर इन्होने कवितायेँ लिखीं हैं उन्होंने मुख्य रूप से राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शन और धर्म पर विद्वानों के कार्यों को लिखने पर ध्यान केंद्रित किया। वह असरार-ए-खुदी सहित अपने काव्य कार्यों के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं – जो नाइटहुड, रुमुज-ए-बेखुदी और बंग-ए-दारा लेकर आए। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद उन्हें वहां के राष्ट्रीय कवि का नाम दिया गया। 

उन्हें “हकीम-उल-उम्मत” (“उम्मा के ऋषि”) और “मुफक्किर-ए-पाकिस्तान” (“पाकिस्तान के विचारक”) के रूप में भी जाना जाता है। ये कविताओं में उर्दू, हिंदी और पारसी भाषा का प्रयोग करते थे. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था की इन्हे केवल ये तीन भाषा ही आती थे. इक़बाल अंग्रेजी भाषा में भी निपुण थे. 1922 में मोहम्मद इक़बाल को किंग जॉर्ज 5 ने ‘नाइट बैचलर’ का सम्मान दिया. यहाँ प्रस्तुत है कुछ allama iqbal 2 line shayari, प्लीज अच्छा लगे तो सर मुहम्मद इक़बाल की शायरी को अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे.

Allama Iqbal Shayari In Hindi

इक़रार ऐ #मुहब्बत ऐहदे ऐ-वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं #इक़बाल.
हर शख्स खुदी की “मस्ती” में बस अपने खातिर जीता है
Allama Iqbal Shayari In Hindi
Allama Iqbal Shayari In Hindi
बे-ख़तर ”कूद” पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
दुनिया की “महफ़िलों” से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब_दिल ही बुझ गया हो।
Allama Iqbal Shayari In Hindi
हज़ारों साल_नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है, #चमन में दीदावर पैदा.
Iqbal Shayari In Hindi
फूलों की “पत्तियों” से कट सकता है ‘हीरे’ का जिगर
मर्दे नादान पर #कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर
Iqbal Shayari In Hindi
बे-ख़तर_कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी

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Iqbal Shayari In Hindi
Iqbal Shayari In Hindi
‘औकात’ में रखना था जिसे 
गलती से दिल में #रखा था उसे 
Iqbal Shayari In Hindi
फ़क़त #निगाह से होता है “फ़ैसला” दिल का
न हो निगाह में #शोख़ी तो दिलबरी क्या है
Allama Iqbal Poetry In Hindi
दिल की #बस्ती अजीब बस्ती है,
लूटने वाले को_तरसती है।
Allama Iqbal Poetry In Hindi
#बातिल से दबने वाले ऐ ‘आसमाँ’ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू #इम्तिहाँ हमारा
तेरे इश्क़ की #इन्तहा चाहता हूँ मेरी सादगी ‘देख’ क्या चाहता हूँ
भरी बज़्म में #राज़ की बात कह दी बड़ा_बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
दुनिया की #महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ #अंजुमन का जब “दिल” ही बुझ गया हो।
तेरे आज़ाद_बंदों की न ये दुनिया न वो #दुनिया
यहाँ मरने की ”पाबंदी” वहाँ जीने की पाबंदी
मुझे #इश्क के पर लगा कर उड़ा 
मेरी खाक ”जुगनू” बना के उड़ा 
Allama Iqbal Poetry In Hindi
Allama Iqbal Poetry In Hindi
माना कि तेरी_दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा_इंतज़ार देख
आँख जो कुछ_देखती है लब पे आ #सकता नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि ”दुनिया” क्या से क्या हो जाएगी…!
और भी कर देता है ”दर्द” में इज़ाफ़ा
तेरे ‘होते’ हुए गैरों का “दिलासा” देना
हमने “तन्हाई” को अपना बना रक्खा 
राख के ढ़ेर ने #शोलो को दबा रक्खा है 
दिल से जो ”बात” निकलती है असर_रखती है
पर नहीं ताक़त -ए -परवाज़ मगर रखती है
न रख ”उम्मीद-इ-वफ़ा” किसी परिंदे से इकबाल,
जब पर निकल आते है तोह अपना “आशियाना” भूल जाते हैं.
नहीं तेरा ”नशेमनं” कसर्-ए-शुलतानी के
गुम्बद पर,
तू #शाहीन बसेर कर पहाडों की ”चट्टानो”
में!!
#ग़ुलामी में न काम आती हैं “शमशीरें” न तदबीरें
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं #पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें
Allama Iqbal Quotes In Hindi
ये जन्नत_मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का #सामना चाहता हूँ
किसी की ”याद” ने
जख्मों से भर दिया है #सीना
अब हर एक_सांस पर शक है के #आखरी होगी….!
मैं रो रो के ”कहने” लगा दर्द-ए-दिल,
वो मुंह फेर कर #मुस्कुराने लगे।
कौन_रखेगा  याद हमें इस दौर ए #खुदगर्जी में,
हालत ऐसी है की ”लोगों” को खुदा याद नहीं
इश्क_कातिल से भी #मकबूल से हमदर्दी भी 
यह बता किससे ”मोहब्बत” की जजा मांगेगा
अनोखी_वज़्अ’ है सारे ज़माने से ”निराले” हैं
ये आशिक़ कौन सी #बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
तू ने ये क्या_ग़ज़ब किया मुझ को भी #फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक #राज़ था सीना-ए-काएनात में
Allama Iqbal Quotes In Hindi
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे_हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ #दराज़ है अब मिरा #इंतिज़ार कर
आईन-ए-जवाँ-मर्दां #हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के ”शेरों” को आती नहीं रूबाही
#सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के “इम्तिहाँ” और भी हैं
तही ”ज़िंदगी” से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों #कारवाँ और भी हैं
कभी ”छोड़ी” हुई मंज़िल भी याद_आती है राही को
खटक सी है जो सीने में #ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
जानते हो #तुम भी फिर भी ”अजनान” बनते हो
इस तरह हमें “परेशान” करते हो.
पूछते हो #तुम्हे किया पसंद है
जवाब खुद हो फिर भी “सवाल” करते हो..
मिटा दे अपनी_हस्ती को गर कुछ मर्तबा* चाहिए
कि दाना खाक में मिलकर, #गुले-गुलजार होता है
#फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में “पनपने” की यही बातें हैं

Iqbal Shayari In Hindi

Allama Iqbal Quotes In Hindi
नशा ”पिला” के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि “गिरतों” को थाम ले साक़ी
#वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभी_बाक़ी है
नूर-ए-तौहीद का ”इत्माम” अभी बाक़ी है

अगर #हंगामा-हा-ए-शौक़ से है “ला-मकाँ” ख़ाली ख़ता किस की है या रब #ला-मकाँ तेरा है या मेरा

अपने मन में #डूबकर पा जा सुराग_जिंदगी 
तू अगर मेरा नहीं #बनता ना बन अपना तो बन
ख़ुदी वो ”बहर” है जिस का कोई किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा_अगर तो चारा नहीं
अल्लामा “इक़बाल” रह० ने ‘फरमाया’ था:-
की मोहम्मद से #वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ है क्या “लौह-ओ-क़लम” तेरे हैं
हम जब_निभाते है तो इस तरह ”निभाते” है
सांस लेना तो #छोड़ सकते है पर दमन_यार नहीं
Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi
Allama Iqbal Quotes In Hindi
महीने-वस्ल के घड़ियों की ‘सूरत’ उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ #जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
जमीर_जाग ही जाता है
अगर दिल #जिंदा हो तो..
कभी ”गुनाह” से पहले
कभी गुनाह के बाद..
#रुलाया ना कर हर बात पर ए 
जिंदगी ज़रुरी नहीं सब की “किस्मत” में
चुप #करवाने वाले हो 
तेरी ”बन्दा” परवारी से मेरे दिन गुज़र रहे हैं
न गिला है #दोस्तों का ,
न #शिकायत-ऐ-ज़माना…!
नहीं तेरा ”नशेमन” क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर_पहाड़ों की चटानों में
तू क़ादिर ओ #आदिल है मगर तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत “बंदा-ए-मज़दूर” के औक़ात
तू शाहीं है #परवाज़ है काम तेरा 
तिरे सामने ”आसमाँ” और भी हैं 
Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi
सारे जहाँ से अच्छा,# हिन्दोस्ताँ हमारा
हम “बुलबुलें” हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा
नहीं इस खुली_फ़ज़ा में कोई #गोशा-ए-फ़राग़त
ये जहाँ अजब जहाँ है न ”क़फ़स” न आशियाना
खुदा के ‘बन्दे’ तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं #मारे-मारे
मैं उसका ”बन्दा” बनूंगा जिसको खुदा के #बन्दों से प्यार होगा
”मुमकिन” है कि तू जिसको_समझता है बहारां
औरों की निगाहों में वो “मौसम” हो खिजां का
दुआ तो ”दिल” से मांगी जाती है, जुबां से नहीं ऐ #इक़्बाल,
क़ुबूल #तोह उसकी भी होती है जिसकी_जुबां नहीं होती.
अमल से #ज़िन्दगी बनती है, ”जन्नत” भी, जहन्नम भी,
ये खाकी अपनी #फितरत में, न नूरी है न नारी है.
ढूंढता रहता हूं ऐ ”इकबाल” अपने आप को.
आप ही गोया ‘मुसाफिर’ आप ही #मंजिल हूं मैं
Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi
ज़मीर ‘जाग’ ही जाता है अगर ज़िन्दा हो #इक़बाल,
कभी गुनाह से #पहले तो कभी गुनाह के बाद।
बात #सझ्दों कि नहीं खुलूस दिल कि होती है #इकबाल
हर ‘मयखाने’ में सराबी और हर #मस्जिद में कोई ”नमाजी” नहीं होता
अपने ‘मन’ में डूब कर पा जा #सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं ”बनता” न बन अपना तो बन
मिटा दे अपनी #हस्ती को गर कुछ #मर्तबा* चाहिए
कि दाना खाक में मिलकर, “गुले-गुलजार” होता है
#जानते हो तुम भी फिर भी #अजनान बनते हो
इस तरह हमें ”परेशान” करते हो
पूछते हो ‘तुम्हे’ किया पसंद है
जवाब खुद हो फिर भी #सवाल करते हो
हरम-ए-पाक भी #अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो “मुसलमान” भी एक
दुश्मन के #इरादों को है ज़ाहिर अगर_करना
तुम खेल वही खेलो #अंदाज़ बदल डालो..!
Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi
साकी की #मुहब्बत में दिल साफ_हुआ इतना
जब सर को झुकाता हूं #शीशा नजर आता है
ताही #ज़िंदगी से नहीं हैं ये फिज़ाएँ
यहाँ सैंकड़ों ”कारवाँ” अभी और भी हैं
कभी ऐ #हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ #लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे_तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
रहमत है ”दिल” के साथ रहे #पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी #कभी तो इसे ”तन्हा” भी छोड़ दे
कितनी अजीब है #गुनाहों की जुस्तजू_इकबाल
नमाज भी ”जल्दी” में पड़ता है फिर से #गुनाह करने के लिए
यक़ीं मोहकम अमल ”पैहम” मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम “जिहाद-ए-ज़िंदगानी” में हैं ये ”मर्दों” की शमशीरें

अपने मन में डूब कर पा जा ”सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी” तू अगर मेरा नहीं बनता न ”बन” अपना तो बन

Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi
खुदी को कर ”बुलंद” इतना कि हर #तकदीर से पहले 
खुदा बंदे से खुद पूछे_बता तेरी रजा क्या है 
दिल से जो बात-निकलती है वोअसर #रखती है
लेकिन नहीं ”ताक़त-ए-परवाज़” मगर रखती है
मस्जिद तो ”बना” दी शब भर में ईमाँ की #हरारत वालों ने
मन अपना_पुराना पापी है बरसों में #नमाज़ी बन न सका
जिस खेत से ”दहक़ाँ” को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस खेत के हर ”ख़ोशा-ए-गंदुम” को जला कर रख दो
ख़ुदावंदा ये तेरे_सादा-दिल बंदे ”किधर” जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है #सुल्तानी भी अय्यारी
इश्क़ भी हो ”हिजाब” में हुस्न भी हो #हिजाब में,
या तो ख़ुद ”आश्कार” हो या मुझे आश्कार कर।
ज़िंदगानी की #हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
जू-ए-शीर ओ तेशा ओ ”संग-ए-गिराँ” है ज़िंदगी
बड़े इसरार #पोशीदा हैं इस तन्हाई ”पसंदी” में .
ये न समझो कि ”दीवाने” जहनदीदा नहीं होते .
#ताजुब क्या अगर इक़बाल इस_दुनिया तुझ से नाखुश है
सारे लोग ”दुनिया” में पसंददीदा नहीं होते .
Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi
Allama Iqbal Shayari On Namaz In Hindi
ढूँडता ”फिरता” हूँ मैं ‘इक़बाल’ अपने आप को
आप ही गोया “मुसाफ़िर” आप ही मंज़िल हूँ मैं
हर मुसलमाँ #रग-ए-बातिल के लिए नश्तर था 
उस के ”आईना-ए-हस्ती” में अमल जौहर था 
जो भरोसा था उसे #क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर था 
है तुम्हें_मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था 
बाप का इल्म न बेटे को अगर #अज़बर हो 
फिर पिसर ”क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर” क्यूँकर हो 
चिंगारी आजादी की ‘सुलगती’ मेरे जश्न में है। 
इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे_बदन में है। 
मौत जहां #जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है। 
कुर्बानी का जज्बा ”जिंदा” मेरे कफन में है।
हम से पहले था ”अजब” तेरे जहाँ का मंज़र
कहीं मसजूद थे पत्थर कहीं_माबूद शजर
खूगर ए पैकर ए महसूस थी इंसां की नज़र
मानता फिर कोई #अनदेखे ख़ुदा को क्योंकर
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तेरा
कुव्वत ए बाज़ू ए #मुस्लिम ने किया काम तेरा
तिरे इश्क़ की ”इंतिहा” चाहता हूँ
मिरी ”सादगी” देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
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