Faiz Ahmed Faiz Shayari : फैज अहमद फैज एमबीई एनआई 13 फरवरी 1911 में पंजाब के नारनौल कस्बे में पैदा हुए. कवि और उर्दू और पंजाबी भाषा के लेखक भी थे। वह पाकिस्तान में उर्दू भाषा के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक थे।
साहित्य के बाहर, उन्हें एक शिक्षक, सेना अधिकारी, पत्रकार, ट्रेड यूनियनिस्ट और प्रसारक होने के कारण “व्यापक अनुभव वाले व्यक्ति” के रूप में वर्णित किया गया है। फैज़ को साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया और उन्होंने लेनिन शांति पुरस्कार जीता।
पंजाब, ब्रिटिश भारत में जन्मे, फैज़ ने गवर्नमेंट कॉलेज और ओरिएंटल कॉलेज में पढ़ाई की। वह ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा करने के लिए चले गए। पाकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद, फ़ैज़ 1951 में लियाकत प्रशासन को उखाड़ फेंकने और इसे वामपंथी सरकार के साथ बदलने की साजिश के एक कथित हिस्से के रूप में गिरफ्तार होने से पहले पाकिस्तान टाइम्स के संपादक और कम्युनिस्ट पार्टी के एक प्रमुख सदस्य बन गए।
उनका काम पाकिस्तान साहित्य और कला में प्रभावशाली है। फैज़ के साहित्यिक कार्यों को मरणोपरांत सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया जब पाकिस्तान सरकार ने उन्हें 1990 में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया।
Faiz Ahmed Faiz Shayari
![]() |
Faiz Ahmed Faiz Shayari On Life |
”दिल” ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम_मगर शाम ही तो है
इक #तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारकइक #अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम_करते रहेंगे
#गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का ”असर” तो देखोगुल खिले जाते हैं वो #साया-ए-तर तो देखो
#दोनों जहां तेरी ”मोहब्बत” में हार केवो जा रहा है कोई #शब-ए-गम गुज़ार के
इक #गुल के मुरझाने पर क्या “गुलशन” में कोहराम मचाइक चेहरा #कुम्हला जाने से कितने ”दिल” नाशाद हुए
![]() |
Faiz Ahmed Faiz Poems |
जो तलब पे #अहद-ए-वफ़ा किया तो वो “आबरू-ए-वफ़ा” गई”सर-ए-आम” जब हुए मुद्दई तो #सवाब-ए-सिदक़-ओ-वफ़ा गया
इक #फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार_दिनदेखे हैं हम ने हौसले #परवरदिगार के
क़फस_उदास है यारों सबा से “कुछ” तो कहोकहीं तो #बहरे-खुदा आज ”ज़िक्र-ए-यार” चले
![]() |
Faiz Ahmad Faiz Two Line Shayari |
लौट जाती है #उधर को भी नज़र क्या कीजेअब भी दिलकश है तेरा हुस्न_मगर क्या कीजे
आप की #याद आती रही रात भर”‘चाँदनी’ दिल दुखाती रही रात_भर
शाम-ए-फ़िराक़ ”अब” न पूछ आई और आ के टल गई दिल था कि फिर #बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
रात यूँ “दिल” में तिरी खोई हुई याद आईजैसे वीराने में #चुपके से बहार आ जाए
आये_तो यूँ कि जैसे हमेशा थे #मेहरबाँभूले तो यूँ कि जैसे कभी *आश्ना* न थेकब तक दिल की ख़ैर ”मनाएँ” कब तक रह दिखलाओगेकब तक #चैन की मोहलत दोगे कब तक ‘याद’ न आओगे
वो बात सारे #फ़साने में जिस का ज़िक्र न थावो बात उन को बहुत #ना-गवार गुज़री है
#मक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में ”जचा” ही नहींजो #कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
तुमने_देखी है वो *पेशानी* वो रूखसार*, वो होंठजिन्दगी जिनके *तसव्वर* में लुंटा दी मैंने
#मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करेदर्द जब “जाँ-नवाज़” हो जाए
ये #आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर “हमदम”#विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं
तेरी “उम्मीद” तेरा इंतज़ार जब से हैन शब को दिन से #शिकायत न दिन को शब से हैकिसी का ‘दर्द’ हो करते हैं तेरे नाम रक़मगिला है जो भी किसी से तेरे #सबब से है
फिर ”नजर” में फूल महके दिल में फिर #शम्में जलीं,फिर ‘तसव्वुर’ ने लिया उस #बज़्म में जाने का नाम।
![]() |
Faiz Ahmed Faiz Ki Shayari |
गर बाजी ”इश्क” की बाजी है, तो जो भी लगा_दो डर कैसा,जीत गए तो “बात” ही क्या, हारे भी तो #हार नहीं
हाँ #नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की ”गवाही”हाँ नग़्मागरो #साज़-ए-सदा क्यूँ नहीं देते
गर बाजी ”इश्क” की बाजी है, तो जो भी लगा दो_डर कैसा,जीत गए तो #बात ही क्या, हारे भी तो ”हार” नहीं
वो बुतों ने #डाले हैं वसवसे कि दिलों से #ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि #ख़याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गया
हम #मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा_मांगेंगेइक ”बाग़” नहीं, इक खेत नहीं, हम सारी ‘दुनिया’ मांगेगे
आए ”कुछ” अब्र कुछ शराब आएइस के बाद आए जो #अज़ाब आए
उतरे थे कभी ‘फ़ैज़’ वो आईना-ए-दिल में”आलम” है वही आज भी #हैरानी-ए-दिल का
हम “शैख़”, न लीडर, न #मुसाहिब, न सहाफ़ीजो ख़ुद नहीं करते वो #हिदायत न करेंगे
”बोल” कि लब आज़ाद हैं तेरेबोल जबां अब #तक तेरी हैतेरा सुतवां, #जिस्म है तेराबोल कि जां अब_तक तेरी है
जो कोई_चाहने वाला तवाफ़ को निकलेनज़र चुरा के चले, #जिस्म-ओ-जां बचा के चले
शैख़ साहब से #रस्म-ओ-राह न की शुक्र है ज़िंदगी_तबाह न की
दिल से तो हर #मोआमला कर के चले थे साफ़ हमकहने में उन के ”सामने” बात बदल_बदल गई
दिल #नाउम्मीद तो नहीं ”नाकाम” ही तो हैलंबी है गम की शाम, मगर #शाम ही तो है
![]() |
Faiz Ahmed Faiz Shayari In Hindi |
निसार मैं तेरी_गलियों पे ए वतन, के जहांचली है रस्म कि कोई ना सर_उठाके चले.
सजाओ #बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम #ताज़ा करो ”बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है”
मताए #लौह-ओ-कलम छिन गई तो क्या गम हैकि “खून-ए-दिल” में डूबो ली हैं उंगलियां मैंने.जुबां पे मुहर लगी है तो क्या, कि_रख दी हैहर एक #हल्का-ए-जंजीर में जुबां मैंने
नहीं #निगाह में मंज़िल तो “जुस्तुजू” ही सहीनहीं विसाल #मयस्सर तो आरज़ू ही सही
जुदा थे हम तो #मयस्सर थीं कुर्बतें कितनी,वहम हुए तो पड़ी हैं “जुदाइयाँ” क्या-क्या।
गर बाज़ी ”इश्क़” की बाज़ी है जो चाहो लगा दो_डर कैसागर जीत गए तो क्या_कहना हारे भी तो बाज़ी ”मात” नहीं
#आदमियों से भरी है यह सारी #दुनिया मगरआदमी को ”आदमी” होता नहीं है दस्तयाब*