Masumiyat Shayari
क्या बयान करें तेरी #मासूमियत को शायरी में हम,
तू लाख गुनाह# कर ले सजा तुझको नहीं मिलनी।
बेवफा तेरा #मासूम चेहरा
भूल जाने के काबिल नही।
है मगर तू बहुत खूबसूरत#
पर दिल लगाने के काबिल नही !
उसकी #सादगी और उसकी #खूबसूरती की क्या दूँ मिसाल,
चेहरे पर मासूमियत# और अदाएं उसकी है बड़ी #बेमिसाल..!!
Masumiyat Shayari |
#दुनिया में कोई भी इंसान# सख़्त दिल पैदा नही होता…
बस ये दुनिया वाले उसकी #मासूमियत छीन लेते है…!!
मासूम# तेरी आँखों में मेरा दिल खो जाता है,
जब जब तुझे देख लू मेरा जीवन #मुकम्मल हो जाता है,
न आए तू जो मुझको #नज़र तेरे दीदार के लिए
मेरा दिल# तरस जाता है।
मुकद्दर की #लिखावट का इक ऐसा भी कायदा हो,
देर से क़िस्मत# खुलने वालों का दुगुना #फ़ायदा हो।
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#मासूमियत तुझमे है पर तू इतना मासूम# भी नहीं,
की मैं तेरे कब्जे# में हूँ और तुझे मालूम भी नहीं..
लिख दूं किताबें तेरी #मासूमियत पर फिर डर लगता है,
कहीं हर कोई तेरा तलबगार# ना हो जाये।
आज उसकी #मासूमियत के कायल हो गए,
सिर्फ उसकी एक नजर से ही घायल# हो गए।
#मासूमियत की कोई उम्र नहीं होती…
वो हर उम्र में आपके साथ# रहती है…!!
दम तोड़ जाती है हर #शिकायत, लबों पे आकर,
जब मासूमियत# से वो कहती है, मैंने क्या किया है
कितना #मासूम था उनका बात करने का लहज़ा,
धीरे से जान कह के… #बेजान कर दिया ……!
#बादलों में जो छिप जाता है वो चाँद,
मैंने रोज़ उसे तुम्हारे दुपट्टे को# सजाते देखा है।
Masumiyat Shayari Two Line
कितनी #मासूमियत छलक आती है
जब छोटे बच्चे# की तरह वो मेरी
#उंगलियो के साथ खेलते खेलते सो जाती है
क्यों #उलझता रहता है तू लोगो से फराज.
ये जरूरी तो नहीं वो चेहरा# सभी को प्यारा लगे।
#मुहब्बत होंठों से नहीं, उनसे निकली #मीठी बातों से है..
क्यों कि #मासूमियत चेहरे से कहीं ज्यादा, उसकी भोली #आँखों…
इश्क़ की #गुंजाइश नही रही अब
दिल बेताब सा हो गया
परिंदो सी थी #मासूमियत
न जाने कैसे कांच सा हो गया ।
#शाम की लाली तेरी
रंगत की याद दिलाती है,
तेरी #मासूमियत ही मुझे
तेरी ओर खींच लाती है !!
मेरी #मासूमियत मुझसे चुरा गया,
कोई इस तरह #मोहब्बत मुझसे निभा गया।
Masumiyat Shayari |
न जाने क्या #मासूमियत है तेरे चेहरे पर..
तेरे सामने आने से ज़्यादा तुझे #छुपकर देखना अच्छा लगता है..
दम तोड़ देतीं है हर #शिकायत लबों पे आकर,
जब #मासूमियत से वो कहती है मैंने किया क्या है?
न जाने क्या #मासूमियत है तेरे चेहरे पर
तेरे सामने आने से ज़्यादा तुझे छुपकर# देखना अच्छा लगता
#धोखा देती है अक्सर #मासूम चेहरे की चमक,
हर काँच के #टुकड़े को हीरा नहीं कहते।
कुछ इस तरह तुम्हे खुदको #आज़माते देखा है,
मेरी #मौजूदगी में तुम्हे पलके झुकाये देखा है।
और ना जाने #क्या-क्या लुट गया,
इश्क.. एक तेरे चक्कर में,
एक #मासूमियत ही थी तो वो भी जाती रही।
#मासूमियत तुझमे है पर तू इतना #मासूम भी नहीं,
की मैं तेरे #कब्जे में हूँ और तुझे #मालूम भी नहीं..
तेरा मासूम #चेहरा मुझे कुछ इस तरह #पिघलाता है,
न #चाहकर भी तेरी हर गलती माफ़# करवाता है।।
अभी खोए हुएँ हैं जनाब, #ख़्वाबों की दुनिया में…
उठते ही कहेंगे “सुनो, तुमने# जगाया क्यूँ नहीं”..❤️
Masumiyat Shayari In Hindi
#फरेबी भी हूँ, ज़िद्दी भी हूँ और #पत्थर दिल भी हूँ,
मासूमियत# खो दी है मैंने वफ़ा# करते-करते !!
तैरती #कागज़ की कश्ती,
रोता #आसमाँ देखो ये मासूमियत# की कैसी अदावत है!!
माना #मुसीबत का बाजार है,
तूझे तोड़ने वाले लोग #हजार है,
सब सामना करना तूझे ही है,
लेकीन अपनी #मासुमीयत बचा रखना…
तेरे चेहरे पे, ये #मासूमियत भी खूब जमती है..
क़यामत आ ही जाएगी ज़रा-सा #मुस्कुराने से..
झूठ भी बोलते हैं वो कितनी #मासूमियत से,
जानकर भी अंजान बनने को जी चाहता है!
जब से फैला है #ज़माने में रिश्वत का रोग,
अरबो मे बिकने लगे है दो कोडी# के लोग !!
वो #जान ही ना पायेगा कभी #कितना मैं उसको चाहती हूॅ..
उसका #मासूम चेहरा देखकर अपना हर #जख्म भूल जाती हूॅ..
उनके हर एक लम्हे कि #हिफाजत करना ए खुदा
#मासूम चेहरा है उदास अच्छा नहीं लगता…
तेरा चेहरा आज भी #मासूम है,
आज भी मेरी चाहत में वही #सुकून है,
तेरे #चेहरे पे एक मुस्कान के लिए,
जान भी बार दे ऐसा मेरा #जूनून है।
#गुस्सा इतना कि पूछो मत…
ओर #मासूमियत ऐसी, की कभी देखी नहीं..
बैठ जाता हूं #मिट्टी पे अक्सर…
क्योंकि मुझे अपनी #औकात अच्छी लगती है।
दम तोड़ जाती है हर #शिकायत लबों पे आकर,
जब #मासूमियत से वो कहती है मैंने #किया ही क्या है ?
#Uski मासूमियत pr Hum फ़िदा #ho gye..
#Uski मोहब्बत me #Wo तबाह ho gye…
ये #मासूमियत का कौन सा अन्दाज़ है,
पर काट# कर कह दिया कि,अब तुम #आजाद हो।
बुरा और भला #पहचानने में मासूमियत# खो गई
जब वो मतलबी इंसान जाग गया, तो #इंसानियत सो गई
जाने कहाँ #मासूमियत खो गई…
Chehre Ki Masumiyat Shayari
#मासूमियत तो रग -रग में है मेरे
बस ज़ुबान की ही #बद्तमीज़ हूँ
#आँख से आँसू न गिरे, तो कविता# कैसी
चेहरे पे #मुस्कान न आये, तो कविता# कैसी
“यही चेहरा..यही आंखें..यही रंगत निकले,
जब कोई ख्वाब तराशूं..तेरी सूरत निकले..”
न जाने क्या मासूमियत है,
तेरे चेहरे पर…
तेरे सामने आने से ज़्यादा,
तुझे छुपकर देखना अच्छा लगता है।
वक़्त ने मुझे सिखाये तो कई सबक़…
पर अफ़सोस मेरी मासूमियत छीनकर…!!
कनखियों से झांकती मासूमियत सवाल करती है,
बचपने की दहलीज़ और मेरी उम्र में फर्क क्या है !
जब भी सादगी की बात होती है,
तो बच्चों की #मासूमियत ही याद आती है।।
अपनी #मासूमियत बचाये रखना ऐ दोस्त
होठों पर मुस्कान सजाये रखना ऐ दोस्त
आज भी याद है मुझे उस चेहरे की
वो मासूमियत वो #मुस्कुराहट वो नज़रे
मानो मानो मुझसे कुछ कह रही हो
आज भी याद मुझे# वो एक चेहरा
बस एक लफ्ज उनको सुनाने के लिये,
जाने कितने #अल्फाज लिखे हमने जमाने के लिये ।
उसे देख कर लगता है नज़र ना लगे
इसकी #मासूमियत को उन दरिंदो की
पहुंच से कोसो दूर रहे इसका #बचपना
कोई आंच न आए इसके #आत्मविश्वास
में कोई ना बहला सके इसे अपनी #साज़िश में
“आईने पर #यक़ीन रखते हैं,
वो जो चेहरा हसीन# रखते हैं..”
Meri Masumiyat Shayari
इतनी #मासूमियत कहाँ से लाते हो,
इतना अच्छा कैसे #मुस्कुराते हो,
बचपन# से ही कमीने हो,
या शक्ल ऐसी बनाते…
#मासूमियत हैं तेरे इश्क़ में उसे कभी तुम खोने ना देना ।
चाहे जितनी भी दर्द आये उन अँखियों को रोने ना देना।
नायाब हैं तेरे हँसी , जिसमें #बेपरवाहियाँ झलकते हैं।
उन हँसी के नूर को यूँ ना तूम जाने देना ।
किस क़दर #मासूम सा चेहरा था
उस का #ग़ालिब धीरे से जान कह कर बेजान कर गया..”
Masoomiyat Pe Shayari
|
ये तो परिन्दों की #मासूमियत है साहेब,
वर्ना दूसरों के घरों में अब आता जाता कौन है।
“सिर्फ चेहरा ही नहीं #शख्सियत भी पहचानो ,
जिसमें दिखता हो वही आईना नहीं होता..
#मासूमियत का कत्ल किस के सिर पर मढें,
हमें ही शौक था समझदार# हो जाने का !!
मासूम निगाहों को #मुस्कुराते देखा है
मैंने अपनी #मोहब्बत को तुम्हे दिल में छुपाते देखा है।
क्या लिखूं तेरी #तारीफ-ए-सूरत में यार,
अलफ़ाज़ कम पड़ रहे हैं तेरी #मासूमियत देखकर।
Masumiyat Ki Shayari
किस क़दर मासूम# सा चेहरा था उस का
“ग़ालिब”
धीरे से जान कह कर बेजान# कर गया..
सोचता हूँ लिख दू तेरी मासूमियत को किताबों में
डर लगता है फिर हर कोई तुम्हे पाने की कोशिश ना करे
Shayari On Masoomiyat
|
कुछ इस कदर ताल्लूक टूटा है नींद से,
कि चाहूं सपने में मिलूंगा उन्हें तो सारी रात
जागने में ही गुजर जाती है।
कभी नम न हो जाये ये मासूम निगाहें,
मेरी आरज़ू है सदा मुस्कराये,
ग़म के साये रहे हम तक ही ,
तेरे आशिया मे खुशियों की बहारे आये।
Masumiyat Par Shayari
कहाँ कोई #आजकल सच्चा होता हैं ?
कहाँ सभी के मकान #पक्का होता हैं ?
आजकल किसी के अंदर भी कहाँ
मासूम दिल वाला #बच्चा होता हैं ?